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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

सुख किसमें है?

आजकल हमें सुख नहीं, आराम नहीं, चैन नहीं-क्यों? हमारी बेचैनी, परेशानी और घबराहट दिन-पर-दिन बढ़ती पर है। और तरह-तरहकी चिन्ताओंने हमें ग्रस रखा है-क्यों? रात-दिन हम सुख-शान्तिकी खोजमें देश-विदेश मारे-मारे फिरते है, अन्धकारमय जंगलोंकी खाक छानते है, पर्वत और पहाड़ियोंसे टक्कर लेते है, खून-पसीना एक करते हैं; पर हमारा हृदय फिर भी अधिकाधिक क्षुब्ध होता चला जाता है। हम उचितानुचित रूपसे, जायज और नाजायज तरीकोंसे रुपये पैदा करते है, खुलेदिल खर्च भी करते है, आलीशान राजमहल-जैसे सुन्दर गृहोंमें भी निवास करते है, पर आत्माको शान्ति नहीं मिलती। हम अपने शरीरकी खूब देख-रेख रखते हैं, इत्र, फुलेलसे उसे खूब सुवासित करते हैं, सुस्वादु मिष्टान्नका भोग लगाते है और बड़ी प्रतिष्ठासे समाजमें रहते हैं; पर हमें सुख नसीब नहीं होता, शान्ति नसीब नहीं होती; जिस ओर दृष्टिपात करते है, अन्धकार ही नजर आता है। हम दूसरोंसे अपना दुखड़ा कहते है; किंतु वे स्वयं दुःख-दर्दसे पीड़ित है। फिर नक्कार खानेमें हमारी तूतीकी आवाज कौन सुने? सबको अपनी-अपनी पड़ी है। अपने दुःखके सामने दूसरोंका कुछ मूल्य नहीं जँचता।

ऐसा क्यों हो रहा है? हमारे क्षोभका मूल कारण क्या है? हम दुःखी क्यों हैं?

हमारी क्षुब्ध मानसिक स्थितिका प्रधान कारण जीवनके पास ध्येयकी शून्यता है। हमारे लक्ष्यकी अस्थिरता है, कभी इधर, कभी उधर ले जानेवाली चञ्चलता है। हम कौन है? कहाँसे, क्यों आये है? कब, कैसे, कहाँ विलीन हो जायँगे? हमारा आत्मीय कर्तव्य क्या है? दुर्लभ मानव-शरीरको पाकर क्या करना श्रेयस्कर है? -इत्यादि प्रश्रोंपर न कभी हम सोचते है, न गम्भीरतापूर्वक विचार करते है। इन आध्यात्मिक प्रश्रोंपर हम मानसिक शक्तियों को एकाग्र नहीं करते, न दूसरोंसे ही इनका उत्तर मालूम करनेकी चेष्टा करते हैं। दुनियाके सभी समाप्त न होनेवाले झगड़ोंमें फँसकर चिन्ता, भय, शोक, खेद, अफसोस, परेशानी के थपेड़े खाया करते हैं।

हमें पहले अपना ध्येय निश्चित करना चाहिये। अपनी नौका किस दिशामें खेकर ले जानी है, किस लक्ष्यकी ओर मैं अग्रसर हो रहा हूँ? मेरे जीवनका परम ध्येय क्या है? जबतक यह स्थिर नहीं होता, तबतक आगेकी बात सोचना व्यर्थ है। अपने निरुद्देश्य जीवनमें हमें निश्चित उद्देश्य बनाना चाहिये।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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